गंडमूल नक्षत्र -:
अश्विनी
अश्लेषा
मघा
मुला
ज्येष्ठा
रेवती
अगर दशा का प्रारम्भ केतु की दशा या बुध की दशा से होता है तो बच्चा गंडमूल में पैदा होता है ।
ग्रह और ग्रहों के देवता
ग्रह -ग्रहों के देवता
सूर्य -ब्रह्मा देवता
चंद्र -शिवजी,शेरांवाली माता
मंगल -हनुमान देवता,बजरंग बलि
बुध -दुर्गा माता (कंजक)
गुरु -विष्णु देवता
शुक्र -वैभव लक्ष्मी,संतोषी माता,लक्ष्मी माता
शनि -कृष्ण देवता,कान्हा देवता
राहु -भैरव जी,शिवजी
केतु -गणेश
सौम्य और क्रूर ग्रह -:
सौम्य ग्रह – क्रूर ग्रह
चंद्र सूर्य
बुध मंगल
गुरु शनि
शुक्र राहु
केतु
अपने-अपने
ग्रहों का षड़बल-:
१.स्थान बल २.काल बल ३.चेष्ट बल ४.दिग बल ५.दृग बल ६.आयान बल
जैसे इंसान दो पावों पर चलता है वैसे ही षड़बल और अंशमात्र (डिग्री) बलाबल के अनुसार ही ग्रह अपना फल देता है। दोनों में से
ग्रहों के कारक भाव-:
कारक भाव वह भाव होता है जिसमे एक अच्छा ग्रह अच्छे फल देने के लिए बाध्य होता है और बुरा
क्या आप जानते है?राशि के स्वामी कौन है?और उनकी मूल त्रिकोण राशि क्या है?राशि के तत्व क्या है?और राशि की क्या विशेषताएं है ?तो यहां मैंने सभी की राशि की विशेषताएं,स्वामी,मूल त्रिकोण,तत्व के बारे में बताया है जबकि यह
क्या आप जानते है ज्योतिष के मुताबिक रत्न क्यों पहनाएं जाते ?
रत्न पहनने का अर्थ यह है की जिस ग्रह का रत्न धारण किया जाता है उस ग्रह की किरणों को शरीर में बढ़ाना होता है।
रत्न धारण करने
कुंडली के सभी भावों को निम्नलिखत शब्दों द्वारा संबोधित किया जाता है :-
१.लग्नेश २.द्वितीयेश
३.तृतीयेश ४.चतुर्थेश
५.पंचमेश ६.षष्ठेश
७.सप्तमेश ८.अष्टमेश
९.नवमेश १०.दशमेश
११.एकादशेश १२.द्वादशेश
नोट-भाव की राशि के स्वामी को भावेश
कुंडली के १२ भावों के नाम इस प्रकार है:-
१.तन भाव २.धन भाव
३.भ्राता भाव ४.माता भाव
५.संतान भाव ६.रोग भाव
७.जया भाव ८.आयु भाव
९.भाग्य भाव १०.कर्म भाव
११.लाभ भाव १२.खर्च भाव