वक्रीय ग्रह-अस्त ग्रह
वक्रीय ग्रह-:
परिभाषा-सभी ग्रह अपनी चल चलते-चलते वक्रीय होते है। सूर्य और चंद्र कभी भी वक्रीय नहीं होते और राहु केतु सदैव वक्रीय रहते है।जब कोई लग्न कुंडली में ग्रह वक्रीय होता है तो उसके परिणाम तीन गुना बढ़ जाता है। इसलिए राहु,केतु (सदैव वक्रीये होते हुए ) का प्रभाव ज्यादा होता है।
नोट-अगर योगकारक ग्रह वक्रीय हो तो उसकी योग कारकता में तीन गुना वृद्धि हो जाती है। और इसके ही उल्ट अगर मारक हो तो उसकी मारकता में वृद्धि हो जाती है।
अस्त ग्रह-:
परिभाषा- जो भी ग्रह सुर्य के आस पास या साथ हो १२-१६ डिग्री तक आ जाये तो वो ग्रह अस्त हो जाता है यानि की जो ग्रह अस्त हुआ,उसकी किरणों की कमी सुर्य के साथ होने से कम हो गयी और हमारे शरीर में अस्त ग्रह की किरणों का पूर्ण प्रवेश नहीं हुआ।अस्त ग्रह को लग्न कुंडली में बलहीन माना जाता है। सुर्य इन ग्रहों को अस्त कर देता चंद्र,मंगल,बुध,गुरु,शुक्र,शनि लेकिन राहु,केतु जो की छायाग्रह होने के कारण सुर्य उनको अस्त करने की बजाये उनके के साथ ग्रहण लग जाता है जिस कारण सुर्य ग्रह खुद दूषित हो जाता है ।
नोट-यदि मारक ग्रह अस्त हो तो उसके मारकत्व की कमी आएगी बिलकुल इसके उल्ट अगर योगकारक ग्रह अस्त हो जाये तो उस ग्रह के योगकारकता में कमी आ जाएगी