मेष लग्न की कुंडली मे छठे भाव मे बैठे शनि और चंद्र देव दोनों मारक होने के कारण विष योग बनाएंगे यहाँ पर दोनों ग्रह बुरा फल देंगे ! यहाँ दोनों का शनि और चंद्र का दान होगा.
फल -लग्न
विमल विपरीत राजयोग-
अगर लग्न कुंडली में बाहरवें घर का मालिक ६,८,१२ भाव में पड़ा हो तो वो विमल विपरीत राजयोग माना जाता है । अगर बाहरवें भाव का मालिक ६,८,१२ में पड़ा हो और बुरे ग्रहों के साथ युति
सरल विपरीत राजयोग-
अगर लग्न कुंडली में आठवें घर का मालिक ६,८,१२ भाव में पड़ा हो तो वो सरल विपरीत राजयोग माना जाता है । अगर आठवें भाव का मालिक ६,८,१२ में पड़ा हो और बुरे ग्रहों के साथ युति
अगर छठे भाव का स्वामी लग्न कुंडली में ६,८,१२ में बैठा हो तो उसे हर्ष विपरीत राजयोग कहा जाता है।
लग्नेश अगर बली हो तभी ही विपरीत राजयोग के फल प्राप्त होंगे लग्नेश बली और डिग्री वाइज बलाबल होना जरूरी
परिभाषा -अगर लग्न कुंडली में त्रिक स्थान का मालिक (६,८,१२) त्रिक स्थान में ही बैठा हो तो वो अपनी दशा ,अन्तरदशा में सदैव अच्छा फल देता है पर लग्नेश बलि अवश्य होना चाहिए ।
लेकिन
अगर लग्न कुंडली में लग्नेश
२.अगर लग्न कुंडली में जिस भाव में नीच का ग्रह हो और उसी भाव का मालिक उस पर दृष्टी डाल दें तो भी नीच भंग योग कहा जाता है । लेकिन डिग्री और ग्रह का बलाबल अवश्य देख लें ।
३.जिस भाव (घर) में ग्रह नीच का पड़ा हो और उसी भाव में ग्रह उच्च का आ जाये तो भी नीच भंग योग कहा जाता है । लेकिन डिग्री और ग्रह का बलाबल अवश्य देख लें ।
उदाहरण कुंडली
नीच भंग योग
१.जिस भाव (घर) में ग्रह नीच का है उसका मालिक उसके साथ आकर बैठे तो उसे नीच भंग योग कहा जाता है लेकिन डिग्री और ग्रह का बलाबल अवश्य देखें ।
उदाहरण कुंडली
ग्रहों का षड़बल-:
१.स्थान बल २.काल बल ३.चेष्ट बल ४.दिग बल ५.दृग बल ६.आयान बल
जैसे इंसान दो पावों पर चलता है वैसे ही षड़बल और अंशमात्र (डिग्री) बलाबल के अनुसार ही ग्रह अपना फल देता है। दोनों में से
ग्रहों के रंग-:
ग्रह -रंग
सूर्या-संतरी
चंद्र -सफ़ेद
मंगल -लाल
बुध -हरा
गुरु -पीला
शुक्र -चमकीला सफ़ेद
शनि -काला
राहु -नीला
केतु -भूरा
नोट -आपकी लग्न कुंडली में जो भी ग्रह योगकारक हो उनका रंग पहनने से उनका बल और
ग्रहों की दृष्टियां –
ग्रहो की दृष्टियों को जानने से पहले यह जानना होगा की इन दृष्टियों को इस विद्या में क्या अर्थ है? असल में दृष्टियों का अर्थ यही समझा जाता है की किसी भी चीज़ को नेत्रों से
वक्रीय ग्रह-:
परिभाषा-सभी ग्रह अपनी चल चलते-चलते वक्रीय होते है। सूर्य और चंद्र कभी भी वक्रीय नहीं होते और राहु केतु सदैव वक्रीय रहते है।जब कोई लग्न कुंडली में ग्रह वक्रीय होता है तो उसके परिणाम तीन गुना बढ़ जाता
ग्रह और ग्रहों के देवता
ग्रह -ग्रहों के देवता
सूर्य -ब्रह्मा देवता
चंद्र -शिवजी,शेरांवाली माता
मंगल -हनुमान देवता,बजरंग बलि
बुध -दुर्गा माता (कंजक)
गुरु -विष्णु देवता
शुक्र -वैभव लक्ष्मी,संतोषी माता,लक्ष्मी माता
शनि -कृष्ण देवता,कान्हा देवता
राहु -भैरव जी,शिवजी
केतु -गणेश
गंडमूल नक्षत्र -:
अश्विनी
अश्लेषा
मघा
मुला
ज्येष्ठा
रेवती
अगर दशा का प्रारम्भ केतु की दशा या बुध की दशा से होता है तो बच्चा गंडमूल में पैदा होता है ।
बच्चों को तुलसी तुलसी के पौधे को पानी देने से बुद्धि का विकास होता है।
तुलसी के पौधे को रोज़ घी का दिया जलाने से भी बुद्धि का विकास होता है।
सोते समय मोबाइल फ़ोन के साथ पानी नहीं रखना
क्या आप जानते है?राशि के स्वामी कौन है?और उनकी मूल त्रिकोण राशि क्या है?राशि के तत्व क्या है?और राशि की क्या विशेषताएं है ?तो यहां मैंने सभी की राशि की विशेषताएं,स्वामी,मूल त्रिकोण,तत्व के बारे में बताया है जबकि यह
ग्रहों के तत्व -:
ग्रह तत्व
सूर्य,मंगल अग्नि
शुक्र,चंद्र जल
बुध
मकर के शनि 24-1-2020 से 17-1 2023 तक रहेंगे तो इस वीडियो मे मेष लग्न की कुंडली वालों के लिए साढ़ेसाती अच्छा या बुरा प्रभाव देगी लेकिन कैसे? इस वीडियो मे बताया गया है !मेष लग्न वालों के कुम्भ राशि