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Ashwani jain astrologer

01 Sep

राजयोग और योग की परिभाषा

  • By Ashwani Jain
  • In Ashwani jain astrologer, RAJYOG

राजयोग और योग की परिभाषा योग (युति योग)-

दो ग्रहों का एक साथ बैठना ही योग कहलाता है। एक साथ बैठे ग्रहों को युति भी कहते है।
योग जन्म लग्न कुंडली के मुताबिक अच्छा या बुरा फल देते है।
शुभ योग जानने के लिए दोनों ग्रह लग्न कुंडली में योगकारक होना चाहिए अगर दोनों में से एक भी मारक हो तो शुभ योग नहीं बनेगा,उसकी शुभता में कमी आ जाएगी।
बिलकुल इसके उल्ट अशुभ योग जानने के लिए लग्न कुंडली में दोनों ग्रह मारक होना चाहिए अगर एक भी ग्रह अशुभ योग में योगकारक हो जाये तो उस योग की अशुभता में कमी आएगी ।
योग में ग्रहों का बलाबल और डिग्री भी देखना बहुत जरूरी है। अगर लग्न कुंडली किसी भी भाव में ग्रह एक साथ बैठे है और उनका बल कम है या कोई एक ग्रह अस्त है तो उनके शुभ योग के फल में कमी आती है। राजयोग की परिभाषा -राजयोग लग्न कुंडली मे यानि जन्म कुंडली मे ग्रह के उच्च के होने पर, योगकारक होने और स्वराशि के होने पर बनता है चाहे वो ग्रह अकेला ही हो कोई युति ना हो अगर राजयोग जातक-जातिका की लग्न कुंडली हो तो वो अच्छा और शुभ प्रभाव देता है लेकिन दशा, गोचर और ग्रह के बल पर खास ध्यान देना होता अगर यह सब सही हो तो वह व्यक्ति उच्च सम्मान,शक्ति, सरकारी नौकरी, मान प्रतिष्ठा, राजनेता, प्रसिद्ध धार्मिक गुरु,बनता है। मैंने आगे उदाहरण देकर बताया है की अच्छे और बुरे योग कैसे बनते है और राजयोग कैसे बनते है इन योग और रोजयोग से जीवन मे क्या प्रभाव पड़ता है।
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