अमावस्या समय 20 अक्टूबर 2025 दोपहर 15:45 से 21 अक्टूबर 2025 शाम 17:55 तक
कर्क लग्न की कुंडली मे लग्न मे चंद्र स्वराशि के, और उच्च के गुरु हो, शुक्र और चौथे भाव मे स्वराशि के, मंगल पंचम भाव मे स्वराशि के हो तो राजयोग बनता है, जातक राजा के सम्मान ऐश्वर्या ऐंव
मिथुन लग्न की कुंडली मे लग्न मे बुध स्वराशि के, तीसरे भाव मे स्वराशि के सूर्य और छठे भाव मे मंगल स्वराशि के, अस्टम भाव मे शनि देव स्वराशि के हो तो राजयोग बनता है, जातक राजा के सम्मान
वृष लग्न की कुंडली मे लग्न मे शुक्र स्वराशि के, पंचम भाव मे उच्च के बुध और दशम भाव मे शनि स्वराशि के हो तो राजयोग बनता है, केंद्र और त्रिकोण बलि होने के कारण जातक राजा के सम्मान
21 सितम्बर को सूर्य ग्रहण भारत मे अदृश्य है। यह ग्रहण भारत मे रात को 10:59 (22:59) से अगले दिन 3:23 (27:23)तक है।
चंद्र ग्रहण के समय (21:57 से 01:26 तक रात) उस समय आप सफ़ेद चीज़ें जैसे की-चीनी,दूध,चावल,सफ़ेद बर्फी या कोई भी सफ़ेद मिठाई इनमे कुछ भी एक चीज आप उसी समय रख लें और अगले दिन सुबह सोमवार को आप
सूतक7 सितंबर 2025 को दोपहर 12:57 से शुरू हो जायेगा। ग्रहण प्रारम्भ -21:57
ग्रहण प्रारम्भ समय –खग्रास प्रारम्भ -23:01ग्रहण मध्य मे -23:42खग्रास समाप्त -24:23 यानि (00:23)ग्रहण समाप्ति-25:26 यानि (रात 1:26)
राजयोग और योग की परिभाषा योग (युति योग)-
दो ग्रहों का एक साथ बैठना ही योग कहलाता है। एक साथ बैठे ग्रहों को युति भी कहते है।योग जन्म लग्न कुंडली के मुताबिक अच्छा या बुरा फल
योग (युति योग) की परिभाषा-
दो ग्रहों का एक साथ बैठना ही योग कहलाता है। एक साथ बैठे ग्रहों को युति भी कहते है।
योग जन्म लग्न कुंडली के मुताबिक अच्छा या बुरा फल देते है।
शुभ योग जानने
अगर छठे भाव का स्वामी लग्न कुंडली में ६,८,१२ में बैठा हो तो उसे हर्ष विपरीत राजयोग कहा जाता है।
लग्नेश अगर बली हो तभी ही विपरीत राजयोग के फल प्राप्त होंगे लग्नेश बली और डिग्री वाइज बलाबल होना जरूरी
सरल विपरीत राजयोग-
अगर लग्न कुंडली में आठवें घर का मालिक ६,८,१२ भाव में पड़ा हो तो वो सरल विपरीत राजयोग माना जाता है । अगर आठवें भाव का मालिक ६,८,१२ में पड़ा हो और बुरे ग्रहों के साथ युति
विमल विपरीत राजयोग-
अगर लग्न कुंडली में बाहरवें घर का मालिक ६,८,१२ भाव में पड़ा हो तो वो विमल विपरीत राजयोग माना जाता है । अगर बाहरवें भाव का मालिक ६,८,१२ में पड़ा हो और बुरे ग्रहों के साथ युति
परिभाषा -अगर लग्न कुंडली में त्रिक स्थान का मालिक (६,८,१२) त्रिक स्थान में ही बैठा हो तो वो अपनी दशा ,अन्तरदशा में सदैव अच्छा फल देता है पर लग्नेश बलि अवश्य होना चाहिए ।
लेकिन
अगर लग्न कुंडली में लग्नेश
विष योग-
लग्न कुंडली मे शुभ और अशुभ योगों का बहुत महत्व है ज़ब कोई शुभ योग बनता है लग्न कुंडली मे तो जातक को सुख सुविधाओं से भरपूर कर देता है हर तरह की इच्छा पूरी होती ज़ब अशुभ
मेष लग्न की कुंडली मे लग्न मे बैठे शनि चंद्र विष योग बनाते है क्यों की शनि देव यहाँ नीच के हो गए है और चंद्र देव अति योगकारक होकर लग्न भाव मे बैठे है तो यहाँ पर शनि देव
मेष लग्न की कुंडली मे लग्न में बैठे शनि देव नीच के होकर तीसरे भाव मे मारक होकर बैठे चंद्र देव पर तीसरी दृष्टी से देख रहे है जिस कारण विष योग बन रहा है इस लग्न कुंडली मे !
मेष लग्न की कुंडली मे लग्न मे बैठे नीच के शनि देव मारक होकर सातवीं दृष्टी सातवें भाव में बैठे अतियोगकारक चंद्र देव को देख रहे है जिस कारण विष योग बनता है लेकिन ध्यान देने योग्य बात यही है
मेष लग्न की कुंडली मे लग्न मे बैठे नीच के शनि देव मारक होकर दसवीं दृष्टी दसवें भाव में बैठे अतियोगकारक चंद्र देव को देख रहे है जिस कारण विष योग बनता है लेकिन ध्यान देने योग्य बात यही है
मेष लग्न की कुंडली मे दूसरे भाव मे बैठे शनि देव और चंद्र देव विष योग नही बनाएंगे क्यों की यहाँ शनि देव दूसरे भाव मे सम होकर बैठे है और चंद्र देवता अतियोगकारक होकर उच्च के होकर बैठे है