योग (युति योग) की परिभाषा-
दो ग्रहों का एक साथ बैठना ही योग कहलाता है। एक साथ बैठे ग्रहों को युति भी कहते है।
योग जन्म लग्न कुंडली के मुताबिक अच्छा या बुरा फल देते है।
शुभ योग जानने
अगर छठे भाव का स्वामी लग्न कुंडली में ६,८,१२ में बैठा हो तो उसे हर्ष विपरीत राजयोग कहा जाता है।
लग्नेश अगर बली हो तभी ही विपरीत राजयोग के फल प्राप्त होंगे लग्नेश बली और डिग्री वाइज बलाबल होना जरूरी
विमल विपरीत राजयोग-
अगर लग्न कुंडली में बाहरवें घर का मालिक ६,८,१२ भाव में पड़ा हो तो वो विमल विपरीत राजयोग माना जाता है । अगर बाहरवें भाव का मालिक ६,८,१२ में पड़ा हो और बुरे ग्रहों के साथ युति
परिभाषा -अगर लग्न कुंडली में त्रिक स्थान का मालिक (६,८,१२) त्रिक स्थान में ही बैठा हो तो वो अपनी दशा ,अन्तरदशा में सदैव अच्छा फल देता है पर लग्नेश बलि अवश्य होना चाहिए ।
लेकिन
अगर लग्न कुंडली में लग्नेश
विष योग-
लग्न कुंडली मे शुभ और अशुभ योगों का बहुत महत्व है ज़ब कोई शुभ योग बनता है लग्न कुंडली मे तो जातक को सुख सुविधाओं से भरपूर कर देता है हर तरह की इच्छा पूरी होती ज़ब अशुभ
मेष लग्न की कुंडली मे लग्न मे बैठे नीच के शनि देव मारक होकर दसवीं दृष्टी दसवें भाव में बैठे अतियोगकारक चंद्र देव को देख रहे है जिस कारण विष योग बनता है लेकिन ध्यान देने योग्य बात यही है
मेष लग्न की कुंडली मे आठवें भाव मे बैठे शनि देव और चंद्र देव विष योग बनाएंगे क्यों की यहाँ शनि देव अस्टम भाव में मारक होकर बैठे है जो की अतिमारक ग्रह हुए और चंद्र देवता यहाँ अस्टम भाव
मेष लग्न की कुंडली मे नौवें भाव मे बैठे शनि और चंद्र देव विष योग नही बनाएंगे क्यों की यहाँ शनि और चंद्र दोनों ही योगकारक ग्रह है जो की चंद्र देव चौथे भाव के मालिक होकर नौवें
मेष लग्न की कुंडली मे दसवें भाव मे बैठे शनि और चंद्र देव अतियोगकारक होने के कारण विष योग नही बनाएंगे ! दसवें भाव मे शनि देव स्वग्रही सबसे अच्छा ग्रह होकर केंद्र मे बैठे है जो की
मेष लग्न की कुंडली मे ग्याहरवें भाव मे बैठे शनि और चंद्र देव अतियोगकारक होने के कारण विष योग नही बनाएंगे ! ग्याहरवें भाव मे शनि देव स्वग्रही सबसे अच्छा ग्रह होकर बैठे है जो की व्यपार, लाभ, इच्छा पूर्ति
मेष लग्न की कुंडली मे बारहवें भाव मे बैठे शनि और चंद्र देव विष योग बनाएंगे क्यों यहाँ दोनों ग्रह शनि और चंद्र देव अतिमारक हुए जिस कारण विष बनता है यहाँ बैठे शनि और चंद्र देव जहां भी देखेंगे
वृष लग्न की कुंडली मे लग्न में बैठे शनि और चंद्र देव विष योग बनाएंगे लेकिन ध्यान देने योग्य बात यही है की विष योग बनने का कारण चंद्र देव होंगे ना की शनि देव चंद्र देव तीसरे भाव
वृष लग्न की कुंडली में तीसरे भाव मे बैठे शनि और चंद्र देवता दोनों ही विष योग बनाएंगे क्यों की यहाँ शनि देव और चंद्र देव दोनों ही मारक है तो दोनों मारक होने के कारण विष योग बनाएंगे
वृष लग्न की कुंडली में पांचवे भाव मे बैठे चंद्र और शनि देव विष योग बनाएंगे लेकिन विष योग बनने की वजह चंद्र देव ही होंगे क्यों की चंद्र देवता इस लग्न कुंडली मे मारक है !शनि देवता विष
वृष लग्न की कुंडली मे छठे भाव मे बैठे चंद्र और शनि देव विष योग बनाएंगे क्यों की दोनों ग्रह इस लग्न कुंडली मे मारक है और भाव भी छठा जो की त्रिक स्थान है जो की अच्छा
वृष लग्न की कुंडली मे सातवें भाव मे बैठे चंद्र और शनि देव विष योग बनाएंगे लेकिन ध्यान देने योग्य बात यही है की यहाँ चंद्र देवता नीच के हो गए है और शनि देव योगकारक हुए तो विष
दशम भाव का मालिक शनि सप्तम भाव में उच्च के हो और चंद्र ग्रह साथ हो तो जातक प्रॉपर्टी सम्बन्ध कार्य या पार्टर्नशिप करके सफलता प्राप्त कर सकता है।
अगर दशम भाव का स्वामी शनि छठे भाव में हो और
विष योग वृष लग्न पार्ट-9
वृष लग्न की कुंडली मे नौवें भाव मे बैठे शनि और चंद्र देवता विष योग बनाएंगे लेकिन ध्यान देने योग्य बात यही है की यहां चंद्र देवता मारक होने की वजह से विष योग
त्रिशक्ति रत्न कब पहने?मिथुन लग्न..
मिथुन लग्न जन्मकुंडली मे ज़ब त्रिकोण के स्वामी बुध,शुक्र,शनि तीनो ग्रह या इनमे से कोई भी ग्रह इन भावों मे बैठे हो तो त्रिशक्ति रत्न पहन सकते है !
ध्यान दें-शनि देव जी की साढ़ेसाती
त्रिशक्ति रत्न कब पहने?कर्क लग्न…
कर्क लग्न की जन्मकुंडली मे त्रिकोण भाव के स्वामी चंद्र,मंगल,गुरु ज़ब 2,4,9,10,11 इन्ही भावों मे तीनो ग्रह या इनमे से कोई भी ग्रह बैठे हो तो त्रिशक्ति रत्न पहन सकते है !और अधिक जानकारी