केतुदेव फलादेश 7 से 12 भाव तुला लग्न…
7.सातवां भाव फल-बुरा,राशि-शत्रु,भाव -अच्छा
8.आठवां भाव फल-बुरा,राशि-नीच,भाव-बुरा
9.नवम भाव फल-बुरा,राशि-नीच,भाव-अच्छा
10.दशम भाव फल-बुरा,राशि-शत्रु,भाव-अच्छा
11.ग्यारहवां भाव फल-बुरा,राशि-शत्रु,भाव-अच्छा
12.बारहवां भाव फल-बुरा,राशि-मित्र,भाव-बुरा
लग्न कुंडली यानि जन्मकुंडली मे राहु और केतु देवता की कोई भी स्वराशि
क्या आप जानते है अगर आपकी जन्म कुंडली में राहु केतु शनि मंगल ग्रह अगर नीच-मारक-६,८,१२ भाव में हो या बुरे प्रभाव दे रहे हो तो हमे वास्तु के मुताबिक अपने घर या ऑफिस में वास्तु के मुताबिक सही
अक्सर हमें राहु देवता से डराया जाता है लेकिन ऐसा नहीं है !
जहां भाव अच्छा दिया गया है वहां राहुदेव के कोई उपाय करने की जरुरत नहीं।
ज्यादातर हमे राहु देवता
त्रिशक्ति रत्न कब पहने? कुम्भ लग्न..
कुम्भ लग्न की जन्मकुंडली मे अगर त्रिकोण भाव के स्वामी शनि,बुध, शुक्र
1,4,5,7,9,10,11भावों मे तीनो ग्रह या इनमे मे से कोई भी ग्रह इन्ही भावों बैठे हो तो त्रिशक्ति रत्न पहना जा सकता
त्रिशक्ति रत्न कब पहने? मीन लग्न…
मीन लग्न की जन्मकुंडली मे अगर त्रिकोण भाव के स्वामी गुरु,मंगल,चंद्र
1,2,4,7,10,भावों मे तीनो ग्रह या इनमे मे से कोई भी ग्रह इन्ही भावों बैठे हो तो त्रिशक्ति रत्न पहना जा सकता है !और
जन्मकुंडली अनुसार उपयुक्त रत्न पुखराज
मेष लग्न की कुंडली मे 1,2,4,5,7,9,11 भावों अगर गुरु देव बैठे हो तो पुखराज रत्न धारण किया जा सकता है !
धातु-सोना,पीतल
ऊँगली-तर्जनी
दिन-गुरुवार
अधिक जानकारी के अच्छे ज्योतिषचार्य को जन्म कुंडली जरूर दिखाएं
कन्या लग्न में आठवें भाव में मंगलीक भंग योग-
कन्या लग्न की कुंडली में अगर मंगल देवता आठवें भाव में हो तो मंगलीक भंग योग बनता है क्यों की मंगल ग्रह अपनी मूल त्रिकोण राशि में है।अगर लग्नेश बुध बलि
क्रम-नक्षत्र- स्वामी
१- अश्विनी-केतु
२- भरणी -शुक्र
३- कृत्तिका-सूर्य
४- रोहिणी -चंद्र
५- मृगशिरा-मंगल
६- आर्द्रा -राहु
७- पुनर्वसु-गुरु
८- पुष्य-शनि
९- आश्लेषा-बुध
१०-मघा-केतु
११-पूर्वाफाल्गुनी-शुक्र
१२-उत्तराफाल्गुनी-सूर्य
१३- हस्त-चंद्र
१४- चित्रा-मंगल
१५- स्वाती- राहु
१६- विशाखा- गुरु
१७- अनुराधा-शनि
१८-
वृश्चिक लग्न में पहले भाव में मंगलीक भंग योग-
वृश्चिक लग्न की कुंडली में अगर मंगल देवता पहले भाव में हो तो मंगलीक भंग योग बनता है क्यों की यहां बैठा मंगल लग्नेश होकर अपनी ही राशि (स्वराशि,अपना ही घर
वृश्चिक लग्न में चौथे भाव में मंगलीक भंग योग-
वृश्चिक लग्न की कुंडली में अगर मंगल देवता चौथे भाव में हो तो मंगलीक भंग योग बनता है क्यों की यहां बैठा मंगल लग्नेश होकर चौथे भाव में केंद्र स्थान में
वृश्चिक लग्न में सातवें भाव में मंगलीक भंग योग-
वृश्चिक लग्न की कुंडली में अगर मंगल देवता सातवें भाव में हो तो मंगलीक भंग योग बनता है क्यों की यहां बैठा मंगल लग्नेश होकर सातवें भाव में केंद्र स्थान में
धनु लग्न में प्रथम भाव में मंगलीक भंग योग –
धनु लग्न में मंगल देवता अगर पहले भाव में हो तो जातक मंगलीक नहीं होता क्यों की यहां पर मंगल ग्रह
त्रिकोण के स्वामी,लग्नेश गुरु के अतिमित्र होने के कारण
धनु लग्न में चौथे भाव में मंगलीक भंग योग –
धनु लग्न में मंगल देवता अगर चौथे भाव में हो तो जातक मंगलीक नहीं होता क्यों की यहां पर मंगल ग्रह त्रिकोण के स्वामी,केंद्र में स्तिथ होकर कभी बुरा फल नहीं
धनु लग्न में आठवें भाव में मंगलीक भंग योग –
धनु लग्न में मंगल देवता अगर आठवें भाव में हो तो जातक मंगलीक नहीं होता क्यों की यहां पर मंगल ग्रह नीच के हो जाने से मंगलीक दोष का परिहार
धनु लग्न में सातवें भाव में मंगलीक भंग योग –
धनु लग्न में मंगल देवता अगर सातवें भाव में हो तो जातक मंगलीक नहीं होता क्यों की यहां पर मंगल ग्रह त्रिकोण के स्वामी,केंद्र में स्तिथ होकर कभी बुरा फल
चार ग्रह जो की(सूर्य,चंद्र,राहु,केतु) पंचमहापुरुष योग नहीं बनाते।(पंचमहापुरुष योगों में नहीं आते)।
और यह पांच ग्रह पंचमहापुरुष योग बनाते है-
मंगल-( रुचक नामक पंचमहापुरुष योग )
बुध-( भद्र नामक पंचमहापुरुष योग )
गुरु-( हंस नामक पंचमहापुरुष योग )
शुक्र-( मालव्य नामक
अगर लग्न कुंडली में चौथे भाव में पापी ग्रह शनि,राहु,केतु,बैठे हो या क्रूर ग्रह सूर्य,मंगल कोई भी बैठा हो तो भी विदेश में रहने का योग बनता है । क्यों की क्रूर ग्रह इंसान को अलगवादी बना देता है।
अगर चौथे भाव का स्वामी बाहरवें भाव में हो और बाहरवें भाव का स्वामी चौथे भाव में हो तो भी हमेशा के लिए विदेश में रहने का योग बनता है।
जैसे की इस लग्न कुंडली में बाहरवें घर का
जब गोचर के शनि देव जन्मकुंडली के चन्द्रमा की राशि पर ही भृमण करना शुरू कर दें तो वो साढ़ेसाती का बीच वाला ढैया होता है ।
उदाहरण-जैसे की जन्मलग्न कुंडली का चन्द्रमा मकर राशि में और गोचर के शनि
कुछ जरूरी पॉइंट साढ़ेसाती के लिए।
१.कभी भी साढ़ेसाती नाम से और जन्म लग्न से कोई लेना देना नहीं ।
२.साढ़ेसाती सिर्फ जन्म कुंडली के चन्द्रमा से ही देखी जाती है ।
३.जन्म कुंडली में शनि देव अगर योगकारक