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राहुदेव फलादेश 1 से 6 भाव तुला लग्न
लग्न कुंडली यानि जन्मकुंडली मे राहु और केतु देवता की कोई भी स्वराशि नहीं होती,राहु और केतु देवता मित्र राशि या उच्च हों और अच्छे भाव मे बैठे हो तो अच्छा फल देंगे अन्यथा बुरा फल देंगे !
1.पहला भाव फल-अच्छा, राशि -मित्र,भाव अच्छा
2.दूसरा भाव फल-बुरा,राशि-नीच,भाव-अच्छा
3.तीसरा भाव फल-बुरा,राशि-नीच,भाव-बुरा
4.चौथा भाव फल-अच्छा,राशि-मित्र,भाव-अच्छा
5.पांचवां भाव फल-अच्छा,राशि-मित्र,भाव-अच्छा
6.छठा भाव फल-बुरा,राशि-शत्रु,भाव-बुरा
राहुदेव फलादेश 7 से 12 भाव तुला लग्न
7.सातवां भावफल-बुरा,राशि-शत्रु,भाव -अच्छा
8.आठवां भाव फल-बुरा,राशि-उच्च,भाव-बुरा
9.नवम भाव फल-अच्छा,राशि-उच्च,भाव-अच्छा
10.दशम भाव फल-बुरा,राशि-शत्रु,भाव-अच्छा
11.ग्यारहवां भाव फल-बुरा,राशि-शत्रु,भाव-अच्छा
12.बारहवां भाव फल-बुरा,राशि-मित्र,भाव-बुरा
लग्न कुंडली यानि जन्मकुंडली मे राहु और केतु देवता की कोई भी स्वराशि नहीं होती,राहु और केतु देवता मित्र राशि या उच्च हों और अच्छे भाव मे बैठे हो तो अच्छा फल देंगे अन्यथा बुरा फल देंगे !
वास्तु टिप्स
VASTU TIPS
जन्मकुंडली के आधार पर वास्तु टिप्स
अगर आपकी लग्न कुंडली यानि जन्म कुंडली मे सूर्य,मंगल नीच के,मारक,या राहु देव से दूषित और बुरे फल दें रहें हो तो आप आपने घर या कमरे मे ईशान कोण यानि नार्थ इष्ट दिशा मे ताँबे का कलश जल से भर कर स्थापित कर लें तो उन ग्रहों के बुरे फल मे कमी आएगी !
अन्य लाभ -बच्चों का पढ़ाई मे मन लगना,बुजुर्गों की तबियत मे सुधार आना, संतान द्वारा समस्या से मे सुधार आना !
ध्यान दें -नित्यदिन प्रांत काल :जल को बदलते रहें !
साफ सफाई रखें !
9914012222
व्हाट्सप्प नंबर
केतुदेव फलादेश 1 से 6 भाव तुला लग्न…
लग्न कुंडली यानि जन्मकुंडली मे राहु और केतु देवता की कोई भी स्वराशि नहीं होती,राहु और केतु देवता मित्र राशि या उच्च हों और अच्छे भाव मे बैठे हो तो अच्छा फल देंगे अन्यथा बुरा फल देंगे !
1.पहला भाव फल-अच्छा, राशि -मित्र,भाव अच्छा
2.दूसरा भाव फल-अच्छा,राशि-उच्च,भाव-अच्छा
3.तीसरा भाव फल-बुरा,राशि-उच्च,भाव-बुरा
4.चौथा भाव फल-अच्छा,राशि-मित्र,भाव-अच्छा
5.पांचवां भाव फल-अच्छा,राशि-मित्र,भाव-अच्छा
6.छठा भाव फल-बुरा,राशि-शत्रु,भाव-बुरा
केतुदेव फलादेश 7 से 12 भाव तुला लग्न…
7.सातवां भाव फल-बुरा,राशि-शत्रु,भाव -अच्छा
8.आठवां भाव फल-बुरा,राशि-नीच,भाव-बुरा
9.नवम भाव फल-बुरा,राशि-नीच,भाव-अच्छा
10.दशम भाव फल-बुरा,राशि-शत्रु,भाव-अच्छा
11.ग्यारहवां भाव फल-बुरा,राशि-शत्रु,भाव-अच्छा
12.बारहवां भाव फल-बुरा,राशि-मित्र,भाव-बुरा
लग्न कुंडली यानि जन्मकुंडली मे राहु और केतु देवता की कोई भी स्वराशि नहीं होती,राहु और केतु देवता मित्र राशि या उच्च हों और अच्छे भाव मे बैठे हो तो अच्छा फल देंगे अन्यथा बुरा फल देंगे !
क्या आप जानते है अगर आपकी जन्म कुंडली में राहु केतु शनि मंगल ग्रह अगर नीच-मारक-६,८,१२ भाव में हो या बुरे प्रभाव दे रहे हो तो हमे वास्तु के मुताबिक अपने घर या ऑफिस में वास्तु के मुताबिक सही चीज़े रखें या वास्तु के मुताबिक सही स्थान पर रखें तो जन्मकुंडली में बुरे प्रभाव देने वाले ग्रह राहु केतु शनि मंगल का बुरा प्रभाव कम होना शुरू हो जाता है इसलिए जन्मकुंडली के उपाय के साथ साथ हमे वास्तु का भी ध्यान रखना चाहिए जैसे की –
अगर आपकी लग्न कुंडली मे शनि-राहु-मंगल
देव ग्रह सही ना हो या नीच हो उनका प्रभाव
बुरा हो तो वास्तु के मुताबिक कुछ चीज़ों को
ध्यान मे रख कर उनके बुरे प्रभाव मे
कमी आ सकती है !जंग लगा हुआ लोहा ना रखें !
खराब मोबाइल और इलेक्ट्रिकल चीज़ें ना रखें !
कबाड़ घर के दक्षिण पक्षिम दिशा पर ही रखें !
कुम्भ शनिगोचर और राशि फ़लादेश
अक्सर हमें राहु देवता से डराया जाता है लेकिन ऐसा नहीं है !
जहां भाव अच्छा दिया गया है वहां राहुदेव के कोई उपाय करने की जरुरत नहीं।
ज्यादातर हमे राहु देवता से डराया जाता है लेकिन यह जरूरी नहीं की राहु देवता हमेशा बुरा फल देते है जबकि राहु देवता अच्छा फल भी देते है लेकिन उनकी प्लेसमेंट अछि होने चाहिए। यहां मैंने उदाहरण के अनुसार बताया है के कहाँ अच्छा फल देते है और कहाँ बुरा फल देते है।
1.पहला भाव फल-बुरा, राशि -नीच,भाव अच्छा
2.दूसरा भाव फल-बुरा,राशि-नीच,भाव-अच्छा
3.तीसरा भाव फल-बुरा,राशि-मित्र,भाव-बुरा
4.चौथा भाव फल-अच्छा,राशि-मित्र,भाव-अच्छा
5.पांचवां भाव फल-बुरा,राशि-शत्रु,भाव-अच्छा
6.छठा भाव फल-बुरा,राशि-शत्रु,भाव-बुरा
लग्न कुंडली यानि जन्मकुंडली मे राहु और केतु देवता की कोई भी स्वराशि नहीं होती,राहु और केतु देवता मित्र राशि या उच्च हों और अच्छे भाव मे बैठे हो तो अच्छा फल देंगे अन्यथा बुरा फल देंगे !और अधिक जानकारी के लिए आप व्हाट्सप्प कर सकते है ! 9914012222
Sometimes we are scared of Rahu Devta but it is not so! Where the Bhava is given good, there is no need to do any remedy for Rahudev. Mostly we are scared of Rahu Devta but it is not necessary that Rahu Devta always gives bad results whereas Rahu Devta also gives good results but their placement should be good. Here I have told according to the example that where they give good results and where they give bad results.
- 1st house – bad, zodiac – low, good
- 2nd house – bad, zodiac – low, house – good
- 3rd house – bad, zodiac-friend, house-bad
- 4th house – good, zodiac-friend, house -Good
- Fifth house – bad, zodiac-enemy, house-good
- Sixth house – bad, zodiac-enemy, house-bad
There is no self-sign of Rahu and Ketu in the birth chart, if the Rahu and Ketu deities are friendly or exalted and are sitting in a good house, then they will give good results, otherwise they will give bad results! For more information you can WhatsApp! 9914012222
त्रिशक्ति रत्न कब पहने? कुम्भ लग्न..
कुम्भ लग्न की जन्मकुंडली मे अगर त्रिकोण भाव के स्वामी शनि,बुध, शुक्र
1,4,5,7,9,10,11भावों मे तीनो ग्रह या इनमे मे से कोई भी ग्रह इन्ही भावों बैठे हो तो त्रिशक्ति रत्न पहना जा सकता है !और अधिक जानकारी के लिए व्हाट्सप्प करें ! 9914012222
ध्यान दें-शनि देव जी की साढ़ेसाती अगर चल रही हो तो नीलम पहनने से परहेज़ करें
त्रिशक्ति रत्न कब पहने? मीन लग्न…
मीन लग्न की जन्मकुंडली मे अगर त्रिकोण भाव के स्वामी गुरु,मंगल,चंद्र
1,2,4,7,10,भावों मे तीनो ग्रह या इनमे मे से कोई भी ग्रह इन्ही भावों बैठे हो तो त्रिशक्ति रत्न पहना जा सकता है !और अधिक जानकारी के लिए व्हाट्सप्प करें !9914012222
जन्मकुंडली अनुसार उपयुक्त रत्न पुखराज
मेष लग्न की कुंडली मे 1,2,4,5,7,9,11 भावों अगर गुरु देव बैठे हो तो पुखराज रत्न धारण किया जा सकता है !
धातु-सोना,पीतल
ऊँगली-तर्जनी
दिन-गुरुवार
अधिक जानकारी के अच्छे ज्योतिषचार्य को जन्म कुंडली जरूर दिखाएं !
कन्या लग्न में आठवें भाव में मंगलीक भंग योग-
कन्या लग्न की कुंडली में अगर मंगल देवता आठवें भाव में हो तो मंगलीक भंग योग बनता है क्यों की मंगल ग्रह अपनी मूल त्रिकोण राशि में है।अगर लग्नेश बुध बलि हो तो विपरीत राजयोग भी बनाता है जो की एक कारण और बनता है मंगलीक भंग योग बनने का। सातवें भाव का मालिक बृस्पति बलि हो तो और भी अच्छा है मंगल विवाहाहिक जीवन खुशहाल बना देता है।
नोट -ग्रहों का बल और और डिग्री वाइज अवश्य चेक कर लें ।
क्रम-नक्षत्र- स्वामी
१- अश्विनी-केतु
२- भरणी -शुक्र
३- कृत्तिका-सूर्य
४- रोहिणी -चंद्र
५- मृगशिरा-मंगल
६- आर्द्रा -राहु
७- पुनर्वसु-गुरु
८- पुष्य-शनि
९- आश्लेषा-बुध
१०-मघा-केतु
११-पूर्वाफाल्गुनी-शुक्र
१२-उत्तराफाल्गुनी-सूर्य
१३- हस्त-चंद्र
१४- चित्रा-मंगल
१५- स्वाती- राहु
१६- विशाखा- गुरु
१७- अनुराधा-शनि
१८- ज्येष्ठा-बुध
१९- मूल-केतु
२०- पूर्वाषाढा- शुक्र
२१- उत्तराषाढा- सूर्य
२२- श्रवण-चंद्र
२३- धनिष्ठा- मंगल
२४- शतभिषा- राहु
२५- पूर्वाभाद्रपद- गुरु
२६- उत्तराभाद्रपद -शनि
२७- रेवती -बुध
वृश्चिक लग्न में पहले भाव में मंगलीक भंग योग-
वृश्चिक लग्न की कुंडली में अगर मंगल देवता पहले भाव में हो तो मंगलीक भंग योग बनता है क्यों की यहां बैठा मंगल लग्नेश होकर अपनी ही राशि (स्वराशि,अपना ही घर ) पर बैठें है और शास्त्रों के मुताबिक केंद्र मंगल हो वो भी अति योगकारक तो रुचक नामक पंच महापुरुष योग बनता है। और लग्न में लग्नेश होकर बैठा मंगल अपनी सातवीं दृष्टी सातवें भाव में पड़ने कारण वैवाहिक जीवन खुशहाल बनाता है।
स्वराशि -ज्योतिष में स्वराशि ग्रह को सबसे अच्छा ग्रह माना जाता है।
नोट -ग्रहों का बल और और डिग्री वाइज अवश्य चेक कर लें ।
वृश्चिक लग्न में चौथे भाव में मंगलीक भंग योग-
वृश्चिक लग्न की कुंडली में अगर मंगल देवता चौथे भाव में हो तो मंगलीक भंग योग बनता है क्यों की यहां बैठा मंगल लग्नेश होकर चौथे भाव में केंद्र स्थान में पर बैठें है और शास्त्रों के मुताबिक केंद्र मंगल हो वो भी अति योगकारक तो रुचक नामक पंच महापुरुष योग बनाता है।अपनी ही चौथी दृष्टी सातवें भाव पर पड़ने से वैवाहिक जीवन खुशहाल बनाता है और जातक/जातिका को अच्छा वर/वधु मिलता/मिलती है।
नोट -ग्रहों का बल और और डिग्री वाइज अवश्य चेक कर लें ।
वृश्चिक लग्न में सातवें भाव में मंगलीक भंग योग-
वृश्चिक लग्न की कुंडली में अगर मंगल देवता सातवें भाव में हो तो मंगलीक भंग योग बनता है क्यों की यहां बैठा मंगल लग्नेश होकर सातवें भाव में केंद्र स्थान में पर बैठें है और शास्त्रों के मुताबिक केंद्र मंगल हो वो भी अति योगकारक तो रुचक नामक पंच महापुरुष योग बनाता है। सातवें भाव (वैवाहिक भाव) में बैठा मंगल अपनी इच्छा अनुसार वर/वधु प्राप्त करता है क्यों की मंगल लग्नेश है ।
नोट -ग्रहों का बल और और डिग्री वाइज अवश्य चेक कर लें ।
धनु लग्न में प्रथम भाव में मंगलीक भंग योग –
धनु लग्न में मंगल देवता अगर पहले भाव में हो तो जातक मंगलीक नहीं होता क्यों की यहां पर मंगल ग्रह
त्रिकोण के स्वामी,लग्नेश गुरु के अतिमित्र होने के कारण अति योगकारक ग्रह है जो की सातवीं दृष्टी सातवें
भाव पर पड़ने से स्वस्थ और खुशहाल वैवाहिक जीवन जीने में सहायता करती है ।
नोट -ग्रहों का बल और और डिग्री वाइज अवश्य चेक कर लें ।
धनु लग्न में चौथे भाव में मंगलीक भंग योग –
धनु लग्न में मंगल देवता अगर चौथे भाव में हो तो जातक मंगलीक नहीं होता क्यों की यहां पर मंगल ग्रह त्रिकोण के स्वामी,केंद्र में स्तिथ होकर कभी बुरा फल नहीं देता और लग्नेश गुरु के अतिमित्र होने के कारण अति योगकारक ग्रह है जो की चौथी दृष्टी सातवें भाव पर पड़ने से स्वस्थ और खुशहाल वैवाहिक जीवन जीने में सहायता करती है ।
नोट -ग्रहों का बल और और डिग्री वाइज अवश्य चेक कर लें ।
धनु लग्न में आठवें भाव में मंगलीक भंग योग –
धनु लग्न में मंगल देवता अगर आठवें भाव में हो तो जातक मंगलीक नहीं होता क्यों की यहां पर मंगल ग्रह नीच के हो जाने से मंगलीक दोष का परिहार हो जाता है। एक नियमानुसार आठवां भाव की राशि जल तत्व होने से मांगलिक दोष का परिहार हो जाता है।
नोट –ग्रहों का बल और और डिग्री वाइज अवश्य चेक कर लें ।
धनु लग्न में सातवें भाव में मंगलीक भंग योग –
धनु लग्न में मंगल देवता अगर सातवें भाव में हो तो जातक मंगलीक नहीं होता क्यों की यहां पर मंगल ग्रह त्रिकोण के स्वामी,केंद्र में स्तिथ होकर कभी बुरा फल नहीं देता और लग्नेश गुरु के अतिमित्र होने के कारण अति योगकारक ग्रह है जो की सातवें भाव में होने से स्वस्थ और खुशहाल वैवाहिक जीवन जीने में सहायता करता है ।
नोट -ग्रहों का बल और और डिग्री वाइज अवश्य चेक कर लें ।
चार ग्रह जो की(सूर्य,चंद्र,राहु,केतु) पंचमहापुरुष योग नहीं बनाते।(पंचमहापुरुष योगों में नहीं आते)।
और यह पांच ग्रह पंचमहापुरुष योग बनाते है-
मंगल-( रुचक नामक पंचमहापुरुष योग )
बुध-( भद्र नामक पंचमहापुरुष योग )
गुरु-( हंस नामक पंचमहापुरुष योग )
शुक्र-( मालव्य नामक पंचमहापुरुष योग )
शनि-( सासा नामक पंचमहापुरुष योग )
१.मंगल देवता -अगर मंगल देवता लग्न कुंडली (जन्म कुंडली) में सम या योगकारक होकर केंद्र स्थान (१,४,७,१० भाव) में उच्च का(मकर राशि में) या स्वराशि(मेष,वृश्चिक)का पड़ा हो,बलि हो और डिग्री वाइज बलाबल अच्छा हो तो रुचक नामक पंचमहापुरुष योग बनता है।
२.बुध देवता -अगर बुध देवता लग्न कुंडली (जन्म कुंडली) में सम या योगकारक होकर केंद्र स्थान (१,४,७,१० भाव) में उच्च का(कन्या राशि में) या स्वराशि(मिथुन,कन्या)का पड़ा हो,बलि हो और डिग्री वाइज बलाबल अच्छा हो तो भद्र नामक पंचमहापुरुष योग बनता है।
३.गुरु देवता -अगर गुरु देवता लग्न कुंडली (जन्म कुंडली) में सम या योगकारक होकर केंद्र स्थान (१,४,७,१० भाव) में उच्च का(कर्क राशि में) या स्वराशि(धनु,मीन)का पड़ा हो,बलि हो और डिग्री वाइज बलाबल अच्छा हो तो हंसक नामक का पंचमहापुरुष योग बनता है।
४.शुक्र देवता -अगर शुक्र देवता लग्न कुंडली (जन्म कुंडली) में सम या योगकारक होकर केंद्र स्थान (१,४,७,१० भाव) में उच्च का(मीन राशि में) या स्वराशि(वृष,तुला)का पड़ा हो,बलि हो और डिग्री वाइज बलाबल अच्छा हो तो मालव्य नामक का पंचमहापुरुष योग बनता है।
५.शनि देवता -अगर शनि देवता लग्न कुंडली (जन्म कुंडली) में सम या योगकारक होकर केंद्र स्थान (१,४,७,१० भाव) में उच्च का(तुला राशि में) या स्वराशि(मकर,कुम्भ)का पड़ा हो,बलि हो और डिग्री वाइज बलाबल अच्छा हो तो सासा नामक का पंचमहापुरुष योग बनता है।
नोट-डिग्री° वाइज जरूर चेक करें। ग्रह का बलाबल जरूर देखें ।अगर ग्रह २९°,०°,२८° का या अस्त अवस्था में हो लग्न कुंडली में तो कोई योग नहीं बनेगा।
पंचमहापुरुष योग का लाभ-
रुचक नामक पंचमहापुरुष के लाभ -१.आकर्षक व्यक्ति २.मेहनती ३.गठीला शरीर ४.आत्म विश्वास से भरपूर।
भद्र नामक पंचमहापुरुष के लाभ-१.तेज़ यादाश्त २.बातूनी ३.मित्रवत व्यहवार करने वाला ४.अच्छा व्यापारी।
हंस नामक पंचमहापुरुष के लाभ-१.संतान सुख २.मान यश ३.ज्ञानवान ४.धन का आभाव ना होना ५.भाग्यवान ६.धार्मिक ७.मार्ग दर्शक ८.अच्छी वाणी ९.परिवार सुख से परिपूर्ण १०.ईमानदार।
मालव्य नामक पंचमहापुरुष के लाभ-१.सुख सुविधाओं से परिपूर्ण २.आकर्षक व्यक्ति ३.कला प्रेमी ४.सौंदर्य प्रेमी ५.धन कारक ग्रह ६.घूमने फिरने का शौकीन ७.शारीरक सुख ८.रोमांटिक ९.संगीत प्रेमी १०.चित्र बनाने का शौकीन।
सासा नामक पंचमहापुरुष के लाभ-१.न्याय प्रिय २.धर्म प्रिय ३.निम्न स्तर कार्य करने से लाभ ४.वाहन का सुख ५.घर का सुख ६.पाताल की चीज़ों से लाभ ७.हक़ की कमाई खाने वाला ८.मेहनती।
व्यवसाय और उपाय
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