अगर लग्नेश (लग्न का मालिक ) बाहरवें भाव में चला जाये तो भी विदेश में रहने का योग बनता है।
उदाहरण कुंडली
लेकिन चौथा भाव जरूर देखें अगर चौथा भाव स्वराशि का हो तो विदेश में रहने का योग
बाहरवें भाव का मालिक अगर दसवें भाव में पड़ा हो तो भी उसकी महादशा या अन्तर्दशा में विदेश में रहने का और वहां काम काज करने का योग बनता है क्यों की बाहरवें भाव का मालिक दसवें भाव में बैठकर
अगर चौथे भाव का मालिक छठे भाव में चला जाये तो भी विदेश में हमेशा रहने का योग बनता है।
उदारहण कुंडली
अगर बारहवें भाव का स्वामी छठे भाव में हो और छठे भाव का स्वामी बारहवें भाव में हो तो विदेश में नौकरी करने का योग बनता है।
उदाहरण कुंडली
ग्रहों के अंश
अंश फल देने की क्षमता
०°-६° २५%
६°-१२° ५०%
१२°-१८°
अगर नौवें भाव का मालिक बाहरवें भाव में बैठा हो या कोई भी कनेक्शन हो तो भी उसकी महादशा-अंतरदशा में विदेश में जाने का या हमेशा रहने का योग बनता है और धार्मिक विदेश यात्रा का भी योग बनता है।
ग्रहों का एक राशि में समय
ग्रह ———————समय
सूर्य ——————–एक महीना
चंद्र ——————– सवा दो दिन,५६ घंटे
मंगल ——————–४० से ४५ दिन
बुध ——————–२८ से ३० दिन
गुरु ———————१३ महीने
शुक्र ———————५० दिन
शनि ——————— ढाई साल,तीस महीने
राहु
ग्रहों के तत्व -:
ग्रह तत्व
सूर्य,मंगल अग्नि
शुक्र,चंद्र जल
बुध
अगर पांचवें भाव के स्वामी का सम्बन्ध बाहरवें भाव से हो तो विदेश में पढ़ाई करने का या फिर पढ़ाई की मदद से विदेश यात्रा होती है ।और जातक वहां हमेशा के लिए नागरिकता प्राप्त कर लेता है।
अगर चौथे भाव का मालिक बाहरवें भाव में बैठा हो और बाहरवें भाव का मालिक दसवें भाव में बैठा हो तो भी विदेश में जाकर काम काज करने का योग बनता है।
उदाहरण कुंडली
मीन लग्न में मंगल देवता अगर पहले भाव में हो तो जातक मंगलीक नहीं होता क्यों की यहां पर मंगल ग्रह योगकारक है और त्रिकोण (भाग्य ) के स्वामी भी है। इसलिए मंगल के दोष का परिहार होता है और
बाहरवें भाव का स्वामी अगर दूसरे भाव में बैठा हो या फिर दूसरे भाव से कोई भी सम्बन्ध हो तो परिवार सहित विदेश में हमेशा रहने का योग बनता है।
उदारहण कुंडली
क्या आप जानते है ज्योतिष के मुताबिक रत्न क्यों पहनाएं जाते ?
रत्न पहनने का अर्थ यह है की जिस ग्रह का रत्न धारण किया जाता है उस ग्रह की किरणों को शरीर में बढ़ाना होता है।
रत्न धारण करने
जब गोचर के शनि देव जन्मकुंडली के चन्द्रमा राशि से एक राशि आगे चले जाये तो वो साढ़ेसाती का आखिरी ढैया होता है
उदाहरण-जैसे की जन्मलग्न कुंडली का चन्द्रमा मकर राशि में और गोचर के शनि देव कुम्भ राशि में
साढ़ेसाती हमेशा जन्म लग्न कुंडली के चन्द्रमा के हिसाब से देखी जाती है,जन्म कुंडली में जहाँ चंद्र देवता बैठें हो या जिस राशि में बैठे हो साढ़ेसाती का हमें वहीं से ही पता चलेगा।
उदाहरण-जैसे की जन्मलग्न कुंडली का चन्द्रमा
मांगलिक योग
सबसे पहले यह जानना आवश्यक है की मंगलीक दोष नहीं एक योग होता है,वास्तव में किसी भी कुंडली में मांगलिक एक दोष नहीं योग माना जाता है परन्तु बहुत से ज्योतिषी मांगलिक दोष कह कर लोगों के मनों
विदेश में हमेशा रहने-नौकरी-कामकाज-पढ़ाई-यात्रा का योग देखने के कुछ जरूरी बातें ध्यान में रखें ।
१.ग्रहों का बलाबल और डिग्री ।
२.ग्रहों की महादशा और अन्तर-दशा ।
३.चौथे भाव के स्वामी का बलाबल जितना कम होगा उतना जल्दी ही विदेश
कुंडली के १२ भावों के नाम इस प्रकार है:-
१.तन भाव २.धन भाव
३.भ्राता भाव ४.माता भाव
५.संतान भाव ६.रोग भाव
७.जया भाव ८.आयु भाव
९.भाग्य भाव १०.कर्म भाव
११.लाभ भाव १२.खर्च भाव
गोचर का विवेचन-गोचर कैसे देखें जन्म कुंडली में।
गोचर जन्म कुंडली का विस्लेषण करते समय बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
इसलिए लग्न कुंडली की विवेचना (व्याख्या) करते समय इस का खास ध्यान रखना चाहिए।
गोचर को सदा लागु करते समय