शनि देव जी का ढैया –
जब गोचर का शनि जन्म कुंडली के चन्द्रमा से चौथे भाव या चौथी राशि में भ्रमण शुरू कर दे और आठवीं राशि में भ्रमण शुरू कर दे तो उस समय को शनि देव का
चार ग्रह जो की(सूर्य,चंद्र,राहु,केतु) पंचमहापुरुष योग नहीं बनाते।(पंचमहापुरुष योगों में नहीं आते)।
और यह पांच ग्रह पंचमहापुरुष योग बनाते है-
मंगल-( रुचक नामक पंचमहापुरुष योग )
बुध-( भद्र नामक पंचमहापुरुष योग )
गुरु-( हंस नामक पंचमहापुरुष योग )
शुक्र-( मालव्य नामक
अगर लग्न कुंडली में चौथे भाव में पापी ग्रह शनि,राहु,केतु,बैठे हो या क्रूर ग्रह सूर्य,मंगल कोई भी बैठा हो तो भी विदेश में रहने का योग बनता है । क्यों की क्रूर ग्रह इंसान को अलगवादी बना देता है।
अगर चौथे भाव का स्वामी बाहरवें भाव में हो और बाहरवें भाव का स्वामी चौथे भाव में हो तो भी हमेशा के लिए विदेश में रहने का योग बनता है।
जैसे की इस लग्न कुंडली में बाहरवें घर का
जब गोचर के शनि देव जन्मकुंडली के चन्द्रमा की राशि पर ही भृमण करना शुरू कर दें तो वो साढ़ेसाती का बीच वाला ढैया होता है ।
उदाहरण-जैसे की जन्मलग्न कुंडली का चन्द्रमा मकर राशि में और गोचर के शनि
कुछ जरूरी पॉइंट साढ़ेसाती के लिए।
१.कभी भी साढ़ेसाती नाम से और जन्म लग्न से कोई लेना देना नहीं ।
२.साढ़ेसाती सिर्फ जन्म कुंडली के चन्द्रमा से ही देखी जाती है ।
३.जन्म कुंडली में शनि देव अगर योगकारक
साढ़ेसाती के उपाय ~
१.कर्म और चाल-चलन सही रखें ।
२.पीपल के नीचे दीपक जलाएं ।
३.पीपल को पानी दें रविवार को छोड़ कर हर रोज़ । पीपल को पानी की जरूरत होती है दूध न दें क्यों की
नीच भंग योग
परिभासा-नीच ग्रह बुरे फल देना कम कर देता लेकिन वो अच्छा फल नहीं देगा ।(बुरे फल में कमी और अच्छा फल देना दोनों बातों में बहुत बड़ा अंतर है )
नीच भंग योग तीन प्रकार के
मंगल दशम भाव मे सिंह लग्न
दशम भाव-कर्म,व्यवसाय
फल-बहुत अच्छा,दृष्टी-4,7,8
योगकारक-हाँ,योग-पंचमहापुरुष (रुचक नामक)
राशि-वृष,भाव स्वामी-शुक्र,
राशि तत्व-पृथ्वी,ग्रह रंग-लाल
कारकेत्व-छोटे भाई,खून, पराक्रम,पुलिस,आर्मी,सरकारी अफसर,सेनापति,क्रोध, दुर्घटना,इंजिनियर,युद्ध
मंगलीक-नहीं,
मंत्र-ॐ भौमाय नमः
क्या आप जानते है?राशि के स्वामी कौन है?और उनकी मूल त्रिकोण राशि क्या है?राशि के तत्व क्या है?और राशि की क्या विशेषताएं है ?तो यहां मैंने सभी की राशि की विशेषताएं,स्वामी,मूल त्रिकोण,तत्व के बारे में बताया है जबकि यह
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वृष लग्न की कुंडली मे चौथे भाव मे बैठे शनि और चंद्र देवता विष योग बनाएंगे लेकिन ध्यान देने योग्य बात यही है की यहाँ चंद्र देवता की वजह से विष योग बनेगा चंद्र देवता की ही पूजा, उपाय
राहु चंद्र ग्रहण भंग योग सभी लग्न
राहु चंद्र से ग्रहण योग होता है तो ग्रहण भंग योग भी बनता है बहुत कम जानकारों को इसका ज्ञान होता है। उदाहरण के तौर पर मैंने सभी लग्न वालों के लिए कहां-कहां
दशम भाव का मालिक शनि सप्तम भाव में उच्च के हो और चंद्र ग्रह साथ हो तो जातक प्रॉपर्टी सम्बन्ध कार्य या पार्टर्नशिप करके सफलता प्राप्त कर सकता है।
अगर दशम भाव का स्वामी शनि छठे भाव में हो और
राहुदेव फलादेश वृश्चिक लग्न 7 से 12 भाव
लग्न कुंडली यानि जन्मकुंडली मे राहु और केतु देवता की कोई भी स्वराशि नहीं होती,राहु और केतु देवता मित्र राशि या उच्च हों और अच्छे भाव मे बैठे हो तो अच्छा फल