मंगल दशम भाव मे सिंह लग्न
दशम भाव-कर्म,व्यवसाय
फल-बहुत अच्छा,दृष्टी-4,7,8
योगकारक-हाँ,योग-पंचमहापुरुष (रुचक नामक)
राशि-वृष,भाव स्वामी-शुक्र,
राशि तत्व-पृथ्वी,ग्रह रंग-लाल
कारकेत्व-छोटे भाई,खून, पराक्रम,पुलिस,आर्मी,सरकारी अफसर,सेनापति,क्रोध, दुर्घटना,इंजिनियर,युद्ध
मंगलीक-नहीं,
मंत्र-ॐ भौमाय नमः
क्या आप जानते है?राशि के स्वामी कौन है?और उनकी मूल त्रिकोण राशि क्या है?राशि के तत्व क्या है?और राशि की क्या विशेषताएं है ?तो यहां मैंने सभी की राशि की विशेषताएं,स्वामी,मूल त्रिकोण,तत्व के बारे में बताया है जबकि यह
जन्म कुंडली अनुसार उपयुक्त रत्न मोती
जन्म कुंडली अनुसार उपयुक्त रत्न
मेष लग्न की कुंडली मे 1,2,5,7,9,10,11 भावों मे चंद्र हो तो मोती रत्न पहना जा सकता है !
त्रिशक्ति रत्न कब पहने?वृष लग्न…
वृष लग्न की जन्मकुंडली मे ज़ब त्रिकोण के स्वामी शनि,बुध,शुक्र तीनो ग्रह इकठे या इन तीनो मे से कोई भी ग्रह 1,2,4,7,9,10 भावों मे बैठे हो तो त्रिशक्ति रत्न पहने जा सकते है !
त्रिशक्ति रत्न कब पहने?मेष लग्न….
मेष लग्न की जन्मकुंडली मे ज़ब त्रिकोण के स्वामी सूर्य,मंगल,गुरु 1,2,5,9,11 भावों मे हो तो त्रिशक्ति रत्न पहना जा सकता है ! जिससे पहने से जातक/जातिका को स्वास्थ्य, दिमागी,भाग्य उन्नति,विद्या,पर्सनालिटी,सरकारी नौकरी संबंध मे लाभ
धनु राशि में गोचर का चंद्र (शुभ/अशुभ )कैसे देखें –
चंद्र देवता एक ऐसा ग्रह है जो ज्योतिष में सबसे तेज़ चाल से चलता है जिसका असर हमारे मन,मानसिक और स्वभाव में भी फर्क पड़ता है वो भी बहुत तेज़ी
तुला राशि में गोचर का चंद्र (शुभ/अशुभ )कैसे देखें –
चंद्र देवता एक ऐसा ग्रह है जो ज्योतिष में सबसे तेज़ चाल से चलता है जिसका असर हमारे मन,मानसिक और स्वभाव में भी फर्क पड़ता है वो भी बहुत तेज़ी
तुला लग्न में सातवें भाव में मंगलीक भंग योग-
तुला लग्न की कुंडली में अगर मंगल देवता सातवें भाव में हो तो मंगलीक भंग योग बनता है क्यों की यहां बैठा मंगल अपनी ही राशि (स्वराशि,अपना ही घर ) पर
मीन लग्न में मंगल देवता अगर सातवें भाव में हो तो जातक मंगलीक नहीं होता क्यों की यहां पर मंगल ग्रह योगकारक है और त्रिकोण (भाग्य ) के स्वामी भी है। इसलिए मंगल के दोष का परिहार होता है और
चंद्र देवता एक ऐसा ग्रह है जो ज्योतिष में सबसे तेज़ चाल से चलता है जिसका असर हमारे मन,मानसिक और स्वभाव में भी फर्क पड़ता है वो भी बहुत तेज़ी से।चंद्र एक राशि में सवा दो दिन ही रहता है
मीन लग्न में मंगल देवता अगर चौथे भाव में हो तो जातक मंगलीक नहीं होता क्यों की यहां पर मंगल ग्रह योगकारक है और त्रिकोण (भाग्य ) के स्वामी भी है। इसलिए मंगल के दोष का परिहार होता है और
वृष लग्न की जन्म कुंडली मे दूसरे भाव मे बैठे शनि और चंद्र देवता विष योग बनाएंगे यहां ध्यान देने योग्य बात यही है की शनि देवता नवंम और दशम भाव के स्वामी होने के कारण और लग्नेश
चंद्र देवता एक ऐसा ग्रह है जो ज्योतिष में सबसे तेज़ चाल से चलता है जिसका असर हमारे मन,मानसिक और स्वभाव में भी फर्क पड़ता है वो भी बहुत तेज़ी से।चंद्र एक राशि में सवा दो दिन ही रहता है
शनि,राहु,केतु की महादशा-अन्तर्दशा में भी विदेश में रहने की मददगार साबित होती है। क्यों की यह सभी ग्रह विदेश में सेट होने या यात्रा के कारक माने जाते है।
शनि देव की साढ़ेसाती या ढैया भी विदेश में सेट होने
वृष लग्न की कुंडली मे चौथे भाव मे बैठे शनि और चंद्र देवता विष योग बनाएंगे लेकिन ध्यान देने योग्य बात यही है की यहाँ चंद्र देवता की वजह से विष योग बनेगा चंद्र देवता की ही पूजा, उपाय
चंद्र देवता एक ऐसा ग्रह है जो ज्योतिष में सबसे तेज़ चाल से चलता है जिसका असर हमारे मन,मानसिक और स्वभाव में भी फर्क पड़ता है वो भी बहुत तेज़ी से।चंद्र एक राशि में सवा दो दिन ही रहता है
तुला लग्न में चौथे भाव में मंगलीक भंग योग-
तुला लग्न की कुंडली में अगर मंगल देवता चौथे भाव में हो तो मंगलीक भंग योग बनता है क्यों की यहां बैठा मंगल उच्च के होकर चौथी दृष्टी अपने ही घर
अगर लग्नेश (लग्न का मालिक ) बाहरवें भाव में चला जाये तो भी विदेश में रहने का योग बनता है।
उदाहरण कुंडली
लेकिन चौथा भाव जरूर देखें अगर चौथा भाव स्वराशि का हो तो विदेश में रहने का योग
बाहरवें भाव का मालिक अगर दसवें भाव में पड़ा हो तो भी उसकी महादशा या अन्तर्दशा में विदेश में रहने का और वहां काम काज करने का योग बनता है क्यों की बाहरवें भाव का मालिक दसवें भाव में बैठकर
अगर चौथे भाव का मालिक छठे भाव में चला जाये तो भी विदेश में हमेशा रहने का योग बनता है।
उदारहण कुंडली